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जिनहर्ष - प्रन्थावली
श्रहि
हि फीट फूलन की माल मह दई फेर, श्रीमयमती महासती कुल उजवार जू । सोवन पुरस सिवकुमार सिद्ध भयो, सो जिनहरख सुं मंत्र नवकार जू ||३३||
ग्रंथ जीव परिग्रह लोलप कथन सवइया ३१ सदन मै अदन मिले न कहूं नैकुवार, पेट पीठ एक कीनी भूख न पछारी कै ।
वैर कि वैरणी रिणी अनंत अंत से, पूत अवधूत करे तातन कुमारि कै ।
बहुत फिरे हैं नाग नकुल खेलें है फाग, गेह मांडी चूटे घूसि छ दर मारि कै ।
ऐसt परिग्रह जिन्हरख न छोरें तोउ जीव की कठिनताई देखौ धू विचारि कै । ३४ |
ग्रंथ धर्म परीक्षा कथन सवइया ३१
धरम धरम कहै मरम न कोउ लहै, भरम मै भूलि रहै कुल रूह कीजीये ।
कुल रूढ छोरि कै भरम फंद तोरि कै, सुगति मोरि कै सुग्यान दृष्टि दीजीयै ।
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दया रूप सोइ धर्म तह कठै है कर्म, भेद जिन धरम पीउप रस पीजीयै ।