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जिनहर्ष-ग्रन्थावली
अथ गुरु हितोपदेश कथन सवइया ३१ चौगति को फैर असो पात ज्यु वव्युला कैसो, कंदुक चौगान बीच दुख त्यौ सहीजीये ।
लहै न विश्राम जीउ जहां तहां करै रीउ,
खेध मै पर्यो ही रहै सदेव कहा कीजिये । । भ्रमत भए उदासी धर्म की जो लेव भासी, __ तोरि कै संसार फासी धर्म ओट लीजीय ।
धर्म तई न कर्म लागें मन के भ्रमण भागै, बोध बीज जागे जिनहरख कहीजीय ॥२६॥
अथ स्वभाव मिलन कथन सवइया ३१ .. जैसै घनघोर जोर आय मिलै चिहुं ओर, पवन को फोर घटत न लागै वार जू ।
सिरता को वेग जैसे नीर तै बढे है तैसे,
छिन में उतरि जाइ सुगम अपार जू । माय मिलै आय उद्यम कीयै विनाय, सुकृत घटै है तब जैहैं कई लारजू ।
असो है तमासो जिनहरख घन (१) धन दोउं मिलै आइ जोईयो विचारजू ॥३०॥
अथ पाप फल कथन सवइया ३१ पाप तै बढे है कर्म कर्म तई बर्दै है भर्म, .. 'दोनु भया पातिक के वीजरे (?)। .