________________
M
CORPORDAN % EWS
उपदेश-छत्तीसी
अथ जिन स्तुति कथन सवइया ३१ सकल सरूप जामै प्रभूता अनूप भूप, धृप छाया माया है न जैन जगदीस जू ।
पुन्य है न पाप है न सीत है न ताप है न,
जाप के प्रताप कटै करम अनीस जू । ज्ञान को अंगज पुज सुख वृक्ष को निकुंज, अतिसे चोतीस फुनि वचन पैंतीस जू
असो जिनराज जिनहरख प्रणमि उप
देश की छतीसी कहुं सवइयै छतीस जू ॥१॥
अथ अथिर कथन सवइया ३१ अरे जीव काची नींव ताह परि अमारति, ते तो अति गति करि जोर सी उठानी है ।
__ तू तो नही चेतता है जानता है रहगी दिढ,
मेरी मेरी कर रह्यौ यामै रति मांनी है। ग्यांन की निजरि खोलि देखि न कछू है तेरा, , मोह दारू में छकानो भयो अग्यनांनी है ।