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जिनहर्ष-ग्रन्थावली
सायर भोती नीपजै हीरा हीरा खाण ।
ज्ञान ध्यान तिहां-नीपजै जिहां सदगुरु की वाण ॥४६॥ ' हस्त हि मंडन दानं है घर मंडन वर नार ।
___ कुल मंडन अंगन जसा मानव मंडन सार ॥५०॥ लंछन निशिपति शान्तरुचि सूरज लंछन ताप ।
दाता लंछन धन बिना सबहु दिया सराप ॥५१॥ क्षान्त दान्त समता रता हणो नहीं षटकाय ।
जसा ज्ञान क्रिया मगन सो साधु कहवाय ॥५२।। सतरै सै त्रीसै समै नवमी सुकल प्राषाढ । दोधक बावन्नी जसा पूरन करी कृत गाह ॥५३।।
॥ इति दोधक बावन्नी सम्पूर्णम् ।। लिखित । वच्छराज श्री इन्दोर मध्ये लिपिकृत स्व हस्तेन]