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दोहा-बावनी फौज दिशौ दिश में लगी जसा धुरे नीसाण । -
झूझै सन्मुख जायके सूर गणे नहीं प्राण ॥३६।। व परै सब दोरहै ले ले आयुध हाथ ।
बदन मलीन करै जसा जाचै कोई अनाथ ॥४०॥ भगत भली भगवंत की संगत भली सुसाधः ।
औरन की संगत जसा आपहर उपाध ॥४१॥ मूरख मरण न देखियत करत बहुत आरंभ । __सात विसन सेवै सदा करै धर्म विच दंभ ॥४२॥ . याग करै प्राणी हणे भाखै धर्म उलंठ।
देखो ज्ञान विचार के क्यु पावै वैकुंठ ॥४३॥ , रीस त्याग वैराग धर हो योगी अवधृत ।
शिव नगरी पावै जसा कर ऐसी करतूत ॥४४॥ लहणा दैणा कुछ नहीं मुंह की मीठी वात ।
रिदय कपट धरै जसा ताके सिर पर लात ॥४॥ वरसै वारधि अहो निशि खाखर तीतो पान ।
भाग्य बिना पावै नहीं जाचक दाता दान ॥४६॥ संख सरीखा ऊजला नर फूटरा फरक । __ जसा न सोभै ज्ञान बिन ज्यु बुटी काम धरकः ।।४७॥ खरौ पंथ है सूर को रण विच मुड विहंड ।
पाछा पाव धरै नहीं जो होवे सतखंड ॥४८॥