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________________ दोहा-बावनी खल संगत तजियै जसा विद्या सोभत तोय । पन्नग मणि संयुक्त तँ क्युन भयंकर होय ॥१६॥ . गाज शरद की कारमी करत बहुत आवाज । ___ तनक न वरसै दीन त्यु कृपण न दै जसराज ॥२०॥ घरटी के दो पड़ विचै कण चूरण ज्यु होय । त्युदो नारी विच पड्यौ सो नर उगरै नहीं कोय ॥२१॥ नहीं ज्ञान जामै जसा नाहिं विवेक विचार । ____ताको संग न कीजियै परहरियै निरधार ॥२२॥ चपला कमला जान कै कछु खरचौ कछु खाउ । ___ इक दिन भोइ सोबौ जसा लंबा करकै पाउ ॥२३॥ छल कर बल कर बुद्धि कर कर के जसा उपाय । आतम वरावर आपणौ दुरिजन दूर नसाय ॥२४॥ जुवती सब जुग वश कियौ किसी न राखी माम । ___ जो यातै न्यारौ रहै ताकु जसा प्रणाम ॥२५॥ झाझी वात न कीजिये थोरा ही में प्राण । जसा वरावर लेखवो सो आप प्राण पर प्राण ॥२६॥ नग दुहिता पति आभरण ताको अरि जसराज । तस पति नारी विण पुरस न बधे शोभा लाज ॥२७॥ टाणा टूणा छोर दै याते न सरै काज । चोखै चित जिन धर्म कर काज सरै जसराज ॥२८॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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