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________________ जिनह - प्रन्थावली ईति मीति यातें रही प्रगट भई शुभ रीति । f नीत मार्ग पैदा किउ सो गाउ ताके गीत ॥६॥ उदय भयें रवि के जसा जायें सकल अंधार | त्युं सद्गुरु के वचन तें मिटे मिथ्यात अपार ||१०|| ऊगत बीज सुखेत में जसा सकल संजोग । त्युं सद्गुरु के वचन तें उपजत - बोध प्रयोग ॥ ११॥ एक टेक घर के जसा निर्गुण निर्मम देव | दोप रोप जाम नहीं करहुं ताकी सेव ॥ १२ ॥ ए विषम गति कर्म की लखी न काहू जाय । रंकन तें राजा करें राजा रंक दिखाय ||१३|| ओस विन्दु कुश अग्र तें परत न लागै वार | आयु अथिर तैसें जसा कर कछु धर्म विचार || १४ || औषध न मिले मीच कु यातें मरै न कोय | कर औषध जिन धर्म कौ जसा अमर तु होय ॥१५ अंध पंगु जो एक है जरै न पावक मांहि । 'त्युं ज्ञान सहित क्रिया करे जसा अमरपुर जाहि ॥ १६ ॥ अमर जगत में को नहीं मरे असुर सुरराज । गढ़ मढ मंदिर ढह पड़े अमर सुजस जसराज ॥१७॥ कंचन तैं पीतर भए मूरख मूढ गमार । तजै धर्म मिथ्यामति मजै धरम अपार ॥ १८ ॥ L { ६५
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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