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दोहा बावनी
पक
ओम् अक्षर सार है ऐसा अवर न कोय : ____ शिव सरूप भगवान शिव सिरसा बंदू सोय ॥१॥ नमियै देव जगद्गुरु नमियै सद्गुरु पाय ।
दया जुगत नसियै थरम शिवगत लहै उपाय ॥२॥ मन तें ममता दूर कर समता पर चित मांहि ।
रमता राम पिछाण के, शिवपुर लहै क्यु नाहिं ॥३॥ शिव मंदिर की चाह घर अथिर मंदिर तज दूर ।
लपट रह्यौ कहा कीच में अशुचि जिहां भरपूर ॥४॥ धंधा ही में पच रह्यौ प्रारंभ किउ अपार ।।
उठ चलेगो एकलौं सिर पर रहेगौ मार ॥५॥ अन्यायोपार्जित अदत्त धन बहुत रीत फल सोय ।
दान स्वल्प फुनि फल बहुत न्यायोपार्जित होय ॥६॥ आतम पर हित आपकु क्या पर को उपदेश ।
निज आतम समझ्यौ नहीं कीनौ बहुत कलेश ॥७॥ इतना ही में समझ तु बहुत पढ़े क्या ग्रंथ । ___ उपशम विवेक संवर लद्यौ यात शिवपुर पंथ ॥८॥