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जिनह प - प्रन्थावली
भूख कुलीन करें अकुली नह भूख घरा घर भीख मंगावे ं, नीच की चाकरि भूख करावें रू निम्मल वंस क्रू मेंल लगावें । भूख ममावे विदेस विपत्त में दीन दुखी मसकीन कहावें, भूख समो नहि दुख जसा कोई पापनि भूख मक्ख भखावें ४५ मेह के कारण मोर लवें फुनि मोर कि वेदन मेह न जाणें, दीपक देखि पतंग जरें अंग सोक बहु दुख चित्त में नांगे । मीन मरें जल के जू विछोहन सोह वरेन न प्रेम पीछा, पीर दुखी की सुखी कहा जागे रे से सुगो जसराज बखाणें ४६ याग रच्यो बलराय छलन क्रू वामन रूप द्विजन्म हो यो, तिन चरन्न रहन्न क्रू नैकु धरा मोहि देहुइ तेहु अघायो । पावक तो गुरुङद्वज दान महीवल दायक राय कहायो, बैकुंठ दांन सुपात्र थें पावें जसा बल सो तो पताल पठायो ४७
राज्य तज्यो हरिचंद नरेसर सत्यवती निज सत्य रहायो, सत्य के कारण सीत- सती सव्य पावक पैठि कै अंग नवायो । सत्य के कारण श्री रघुराय भन्यो बनवास प्रवास पठायो, सत्य तजो सत वीर विचक्षण सत्य जसा तिहां वित्त वसायो ४८
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लूंग गलें जल संगत तें जल सीतल पावक थे प्रजले धन्य जयारि भिखारी को सांन प्रवास की नारि को सील चलें हैं । आलस विज्ज पमायें से दान संदेमें उलग्ग कछू न फले हैं, हाथ परायें करमण त्युं गुण उत्तम गर्व किये जु गलें हैं ||४६||