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मातृका-बावनी
धन्न जगत से सो जसराज संपत्ति विपत्ति में सच धरें हैं,
आपकी कीरति आप करें नहीं प्रीति के वेण सदा उचरे है। दीन दुखि-जन को हित वच्छल सज्जन सूउपगार करे हे, गर्व करें नहि पाइ विभूति विभूति सुपुण्य भंडार भरें हैं।४० नैकु विचारि कहु मेरे प्राणी ममत विपत्ति को कारण हेरे, खुचि रहे हे ममत्त कुमत्ति में सो तो अनेक उदेस सह रे । देस विदेस फेरे मम नाज कर यो सुख मांन रिति न लहें रे, एह ममत्त कुमत्ति देखावत्त झत्ति तजो जसरास कहें रे ॥४१॥ पंडित नांम धरावें अनेक पे पंडित सोई सभाकू रीझावें, दान के देवणहार अनेक पें दाइक सोउ जगत्त जिवावें । दक्ष विचक्षण हे जू अनेक पे दक्ष सोई परतक्ष हसावे, सुर अनेक कहावे जसा फुनि सुर सोई अमरापुरि पावें ॥४२।। फोज विचे रण तूर नगारे घुरे केइ सुर संग्राम करें हैं, केइ प्रचंड महा भुजदंड मृगाधिप खंड विहंड करें हैं। केइ महामद मस्त पटाजर ताहि सनमुख जाइ अरे हैं, दर्प कंदर्प विदारक अल्प तिसी के पगें जसराज परे हैं ।४३॥ बृव परें तब उत्तम मध्यम कायर सूर सवे मिल धावे,
आम प्रयोग होवें तब लोक सवे मिलि आइ के लाय वुझावें । जीमणवार निहार सवे नर नारि विचारी उछाह सूावें, दिन वभुक्षित घोरे कहें जसराज तवे दिग कोन रहावें ॥४४॥