________________
जिनहर्ष - प्रन्थावली
८३
धंध सवे सनबंध जसा कुण काको पिया पिय माय सनेहि, कामनि कामकला विकला सुत बंधु अग्यारथ हे निज देहि । मंदिर सुंदर घोष आवास विणास लहें खिण में फुनि एहि, जो कछु पुन्य करोगे तो साथि न साथहि आयेंगे और सवेहि |५|
अगर अग्ग में जोरे दहावत तौ तो सुगंध सवे विस्तारें, चंदन काटत है जु परस्तु तो ताहि परस्सु वदन सुधारें । यंत्र में पीलत ईपन कु जन क्रू उह मिष्ट जसा रस छारें, सज्जन क्रू दुख देत दुरज्जन सज्जन तोहि न दोष विचारें || ६ || आज में काज करूगो सहि यह कालि करू गो कछूक घटे हे, गुं न कियो में कियो यह काहे क्रू राति रच्यो सविचार घटें हैं। में जूं ं कियो मेरो होत कियो सब श्राप जू आपहि माहि कटें हैं, तू जू करें जसराज वृथा प्रभु को ज्ं कियो कबहुँ न मढ़ें हैं ||७|| इंधन चंदन काठ करें सुर वृक्ष उपारि धतूरज बोवें, सोवन थाल भरें रज रेत सुधारस सू कर पाउहि धोवे । हस्ति महामद मस्त मनोहर भार बहाड़ के ताहि विणोवें, सूट प्रमाद ग्रयो जसराज न धर्म करे नर सो भत्र खोवें ||८||
ईप कह कहां आक धतूर कपूर कहां कहां लूंग कि खारि. सर कहां कहां ज्योति सद्योत निसाउ नृ आरि कहां अंधियार | रिरि कांहीं कांहां कंचन है कहां लोह कहा गज वेलि समारि, हाथि कहां खर उंट कहां कहां धर्म धर्म पटंतर भारि ||६||