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वीशी
निज भगत निरास न मेलिज्यो,
पासइ राखेज्यो तेडि रे वा.॥६॥ कोइ तउ केहनइ अोलगइ, कोइ केहना हुइ रह्या दास रे ।वा.।
जिनहर्ष भवो भव माहरइ, एक तुहीज सास वेसास रे बा.||७||
अजितवीर्य-जिन-स्तवन
[ ढाल-महाविदेह खेत सुमणहउ ] अजितवीरज अरिहन्त सुं, मिलियर माहरउ मन्न लाल रे ।
अवर न को वीजउ लखड्,
आवइ जावइ प्रछन्न लाल रे ॥१५॥ हटकु तउ पिणि नवि रहइ, रसियउ प्रेम विलूध लाल रे ।
प्रभु गुण मीठा मन गमइ,
ज्यु साकर सुदूध लाल रे ॥२प्र.।। पलक न छोड़इ पाखती, रहइ जपतउ जगदीश लाल रे ।
भमर कमल ज्यु मोहियउ, चित चरणे निशदीश लाल रे ॥३प्र.!