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जिनहर्ष-ग्रन्थावली
दुःख भंजण रंजणहार रे. बाल्हेसर मोरा ।
परमेसर पीहर तो पखड़,
कुण तारइ जलधि संसार रे बा.||१|| सुख दुख पाणी सुमरयड, कोइ नावइ थाग अथाह रे वा.
वहइ जन्म मरण कल्लोल मई,
मद आठेड् मच्छ ग्राह रे ।वा.२।। अइतो राग द्वष पारा विन्हे, क्रोधादिक गिरि सुविशाल रे ।वा.।
अउ तर झूठ मिथ्यात भरम
विपया रस सरस सेवाल रे वा.॥३॥ माहरो प्राणी तलफइ घणु, पड़ियउ भवसायर मांहि रे वा.।
करुणा कर तर हूं नीकल,
जउ काढइ तुकर माहि रे वा.||४|| तू तारइ तउहिज हूं तिरू, बीजउ नहीं तारणहार रे वा.
मुझनइ आझर छह ताहरउ,
बड़गी करज्यो मुझ सार रे बा.||५|| त्रीजा मुगला अवहीलनइ, हुं लागउ ताहरइ केडि रे ।वा.।
१ जागि जवाल।