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वीशी
जे कहिबउ छह तुम मणी रे, ते तउ अम्ह नइ लाज । . सीख किसी सुपरीछनइ रे,
सुणि साहिव सिरताजो रे ॥६से.।। नेमप्रभु म चीसारिजो रे, धरिज्यो अविहड़ नेह ।
कहइ जिनहर्प विचारिज्यो रे, सइंण न दाखइ छेहो रे ॥७से.॥
वीरसेन-जिन-स्तवन [ ढाल- अाज नइ बघावो सहिया माहरइ ] जउ कोइ चालइ हो उण दिसि आदमी, तउ लिखि द्य' संदेश।
__ प्राण सनेही हो श्रीवीरसेन नइ,
मिलिवा मन अंदेश ॥१ज.।। कागलवाही हो जउ कीजइ किमइ, थायइ सईध पिछाण ।
दिन दिन थायइ हो ववती प्रीतड़ी,
मिलिवा उलसइ प्राण ॥२ज.।। कागल माहे हो खांति करी लिखु, ठावा वोलि विचारि ।
मत निसनेही हो रीझड वाचिनइ,
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