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जिनहर्ष - प्रन्थावली
चापड़ मौजि पार मौजि अपार ॥ ३ज. ॥ साहिबनड़ त हो कुमणा कांन थी, पूरण पूरण चाहि ।
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सेवक मउज न पावड़ प्रभु तणी, चूक चाकरी मांहि ॥४ज. ॥
माहरइ तउ गरज न का किणि वातरी, कहिवउ छड़ मुझ तारि ।
साहिब उ बाते इक बातड़ी, आवागमण निवारि ॥ ५ज. ॥
ठावा' संदेशा हो जर पहुंचाईयर, फेरि पड़ड़ कुज कोई ।
निज मन मांहे हो प्रभु मानइ भलो, जउ दिन सावल होड़ ॥ ६ज. ॥
करम सखाइ हो मुझ छोडड़ नहीं, पड़ियर सबल पासि ।
जउ जिनहर्ष महिर प्रभुनी हुई, पूगड़ सबली ग्राश ॥ ७ज. ॥ महाभद्र - जिन-स्तवन
[ ढाल - मोरा प्रीतम ते किम कायर होइ ] निशि भर सूतां आज मंहजी, दीटां सुपनां मांही ।
१ मीठा ।