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वीशी
अनमिप नयणे हो निरखिये, प्रभु सूरति सुसनेह ॥ जि०॥ आंखड़ियां ताढिक बलइ, जिस ग्रीपम रिति मेह ।।जि. ४॥ तु अंतर्गत आतमा, तू साजण तू सइण ॥ जि०॥ तुझ नइ देखिसि जिण घड़ी,सफल गिणिस दिन रइंण ।जि.५ घड़ी घड़ी नइ अंतरइ, चीता आवइ सामि ॥ जि०॥ प्राण सनेही हो ताहरइ, हुं बलिहारी नामि ।।जि० ६ सा.।। जउ मिलिवउ सिरज्यो हुवइ. तउ हिज मिलिवउ थाइ ।जि.। कहइ जिनहर्ष चीतारिज्यो, दूरि थकी महाराइ ।जि.७।सा.।
ईश्वर-जिन-स्तवन
[ढाल-सुरिण सुणि वालहा.] ईसर प्रभु अवधारियइ. माहरी एक अरदास । करुणाकर करुणा करउ, सेवक देखि उदासो रे ॥१॥
प्रीतम माहरा. अलवेसर अरिहन्तो रे, - भेटण ताहरा चरण हियो उलसंतो रे ॥श्री.।।२।। जाणुहूं सेवा करू. तुम'ची वेकर जोड़। राति दिवस हाजर रहूं. ए मुझ मन मई कोड़ो रे ।३। प्री.। आंखडियां अलजउ करे, देखण तुझ दीदाह । मन तरिसई मिलिवा भणी. जिम चातक जलधारो रे ।४।पी.। ।
१ सामी।