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वीशी
पिणि तर साची खबर न का पड़ी रे, तिणि भ्रम भूलउ फिरू या रे || ४ || श्री . ॥
कामी क्रोधी कुटिल कदाग्रही रे,
धरम तणी न सुहावड़ बात रे । हसि हसि पाप दिसि पगला भरू रे, कुण गति थासी माहरा तात रे ||५|| श्री. ॥ माहरी तउ करणी छड़ एहवी रे, जेह थी लहिय नरक निगोद रे ।
पिण साहिब नउ बल सबलउ छई छे, तिणि मन मांहे अधिक प्रमोद रे || ६ || श्री . ॥ आझउ झाझउ मुझ नह ताहरउ रे, करिज्यो जुगती बात सुजाण रे । कहइ जिनहरख चरण शरण हुज्यो रे, ताहरा माहरा जीवन प्राण रे || ७ || श्री . ||
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चन्द्रबाहु - जिन-स्तवन
[ ढाल - गोडी मिश्र ]
सुणि २ मोरा अंतरजामी, तोनह वीनति करू शिरनामी हो । तु त्रिभुवन नाथ कहावह, स्युं देइ नइ वरतावड़ हो । सु. १ | तोरउ तारक नाम कहीजड़, तार्यउ कोइ न सुखीजड़ हो । सु. | तु तर मोह तथा दल मोड़, किम सेवक नइ सुख जोड़ हो२