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जिनहर्प-ग्रन्थावली अर सेव॒ अहनिश पाय । महिर करीनइ हो सेवा घउ जिनहरख सुजी, अर शिव सुख तणउ उपाय ।६।अ.।
चन्द्रानन जिन स्तवन
[ढाल पथोडा रो] श्री चन्द्रानन चतुर विचारियइ रे, विरुद पोतानउ गरीव निवाज रे । जे पाछइ ही करिवउ पिणि आपनइ रे, ते तउ पहिली कीजइ काज रे ॥१॥ श्री.॥ मुझ नइ तउ तरिवर तुम थी हुसी रे, भव सायर हुती जिनराज रे ।। तउ हिवइ केही करउ विचारणा रे, बांह गह्यां री वहिज्यो लाज रे ॥२॥ श्री.।। चोरी कीधी मई तुझ सुघणी रे, चोरां सेती कीघउ गूझ रे। सार लहेसी आगली प्राणियउ रे, करम उदय जदि आसी सूझ रे ॥३॥ श्री.।। हूं मिथ्यात कदाग्रह मोहियउ रे, पोता नउ मत कीध प्रमाण रे।