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वीशी
हु उ दीन दयामण्ड, होजी - साहिव दीन दयाल | मुझ जिन हरख सदा हुवड़, होजी वंछित पूरि कृपाल । ७हि. ॥
सूरप्रभ - जिन - स्तवन
[ ढाल - जोवउ म्हारी आई उरण दिसि चालतो हे ] श्रावर मोरी सहिय' सूरप्रभु स्वामि ना हे, हिल मिलि नई गुण गावां हे ।
अंतर जाभी वाल्हेसर तणी हे, मउज - कदे किणि पावां है | १ | प्राण सनेही परमेसर विना हे, वंछित फल कुण आपई हे । करुणानिधि कर आपणी है, सेवक थिर करि थापड़ हे । २ । सेवा सूधी प्रभु ती हे, किम ही कीधी जायड़ है । तउ कुमणा न रहइ किणि बातरी है, दिन २ दौलति थायइ हे ३ इणि साहिब री मूरति मोहणी है, दीठा ही वणि श्रवइ है । ते देखइ जे साहिब ना हुबइ है, अवर न देखण पावड़ है | ४ | अंतरगत नी अलवेसर परवड़ है, पीड़ कहउ कुण पालड़ है. जन्म मरण भव सागर बृडतां हे, हितसु ं हाथे झाला हे ॥ ५ ॥ अरियण कोइ गंजी सकड़ नहीं है, थायड़ बलवंत वेली हे | श्राप समोवड़ि लगतां करइ है, रूख प्रमाणड़ वेलि हे | ६ जे जग मांहे आप सवारथी हे, तेहनउ सग न कीजड़ है । काम कढू जिन हर्ष जिके हुबइ हे, आपण पउ तसु न दीजड़ है । ७
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१ सूरति ।