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त्रीशी
पख ग्रह तसु राह, बड़ी वैर आवी लीयड़ रे ।
तुजन सेवड़ राह, ताहरड़ बड़री नवि पामीयड़ रे ॥ ४ ॥ तेहनइ रोहिणि नारि, रोहिणि वाल्हउ सहू कहइ रे । तई तउ छोड़ी नारि, समता नारी रातउ रहह रे ||५|| तु त्रिभुवन नउ चंद, वारसां जिनवर सांभलउ रे । उनिहरप आनंद, महिरि करी मुकनउ मिलउ रे ||६||
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चन्द्रवाहु - जिन - स्तवन
[ ढाल --- गीदूडउ महकइ राजि गीदूडउ महकइ । ए देशी ] श्री चंद्रवाहु तेरमा, तुरंत सांभली रे साहिब अरदास | सां म्हारा हो गुणवंता लाल, म्हारा हो केसरिया लाल । म्हारा हो मानीता लाल, म्हारा हो व्हालेसर लाल || मुजरउ जी लेज्यो राजि मुजरउ जी लेज्यो । हुं सेवक प्रभु तुम ताउ, तु माहरउ साहिब सुखवास ॥१॥ मोहणगारा साहिबीया, मन मोह्यउरे प्रभुजी तुझ नाम | मो राति दिवस मनमड़ वस, मइ भमतां रे पाम्यउ विश्राम । २ आइ मिलु किम तुज भणी, नवि दीधी रे पांपडली देव | दी | चरणे ग्राउं ताहरे, कर जोडी रे करू ताहरी सेव । जो३ || भवसायर बीहामणउ, तरि न सकुरे साहिबजी तास |न। तारू' मेल्हड़ आपणा, तर तरिनड़ पहुचें सिववास ॥त. ४॥
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