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जिन सिद्धान्त]
प्रश्न--पुण्य प्रकृति कितनी व कौन कौन सी हैं ?
उत्तर-पुण्य प्रकृति६८ हैं। कर्म की समस्त प्रकृति १४८ हैं जिनमें से पाप प्रकृति १०० घटाने से शेष ४८ प्रकृति रहीं और उनमें नामकर्म को स्पर्शादिक २० प्रकृति मिलाने से ६ प्रकृति पुण्यप्रकृति कही जाती हैं। स्पर्शादिक २० प्रकृति किसी को इष्ट किसी को अनिष्ट होती हैं इसीलिये यह २० प्रकृति पुण्य तथा पाप में गिनी जाती हैं।
प्रश्न-आठों कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति कितनी है ?
उत्तर-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, अन्तराय इन चारों कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस तीस कोडा कोड़ी सागर है । मोहनीय कर्म की सत्तर कोड़ा कोड़ी सागर है। नामकर्म गोत्रकर्म की वीस कोड़ा कोड़ी सागर और आयु कर्म की तेतीस सागर की है।
प्रश्न-आठों कर्मों की जघन्य स्थिति कितनीर है ? ___ उत्तर-वेदनीय की बारह मुहर्स, नाम तथा गोत्र की आठ पाठ मुहूर्त और शेष समस्त कर्मों की अन्तर्मुहूर्त जघन्य स्थिति है।
प्रश्न--कोड़ाकोड़ी किसे कहते हैं ?
उत्तर-एक करोड़ को एक करोड़ से गुणा करने पर जो लब्ध हो उसे एक कोड़ाफोड़ी कहते हैं।