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जिन सिद्धान्त ]
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आदि ४, ( २३-२७) ] जाति आदि ५; ये मिलकर ७८ प्रकृति होती हैं ।
प्रश्न -- पुद्गल विपाकी कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर -- जिसका फल शरीर में मिले, उसे पुद्गल विपाकी कर्म कहते हैं ?
प्रश्न -- पुद्गल त्रिपाकी कर्म की प्रकृति कितनी और कौन कौन सी हैं ?
उत्तर - पुद्गल विपाकी की ६२ प्रकृति हैं ( सर्वप्रकृति १४८ हैं जिसमें से क्षेत्र विपाकी ४, भव विपाकी ४, जीव विपाकी ७८, ऐसे सब मिलाकर ८६ प्रकृति घटाने से शेष जो ६२ प्रकृति हैं ये पुद्गल विपाकी कर्म की हैं । )
प्रश्न --- भवविपाकी कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर -- जिस कर्म के फल से जीव संसार में रुके रहे उस कर्म का नाम भवविपाकी कर्म है।
प्रश्न -- भवविपाकी कर्म की कितनी च कौन कौन सी प्रकृतियां हैं ?
उत्तर -- भवविपाकी कर्म ४ हैं १ नरक आयु, २ तिर्यंच आयु, ३ मनुष्य आयु, ४ देव आयु | प्रश्न --- क्षेत्रविपाकी कर्म किसे कहते हैं । उत्तर -- जिस कर्म के फल से विग्रहगति में जीवका
आकार पहला-सा बना रहे, उसे क्षेत्रविपाकी कर्म कहते हैं ।