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[ जिन सद्धान्त
भाव तीसरा संवर, संज्वलन का अभाव चौथा संवर | प्रश्न -- अनन्तानुवन्धी का अभाव किसको कहते हैं ? उत्तर -- संसार के कोई पदार्थ इष्ट अनिष्ट नहीं हैं निष्ट रागादिक भाव है, इष्ट वीतराग भाव है ऐसी प्रतीति होते हुए भी रागादिक छोड़ न सके ऐसे आचरण का नाम अनन्तानुवन्धी का संघर है ।
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प्रश्न - अप्रत्याख्यान का संवर कैसे होता है ? उत्तर -- स की हिंसा का राग छूट जावे, अमन पदार्थ खाने का राग छूट जावे, रात्रि में चारो आहार खाने का गंग छूट जाये परन्तु स्थावर की हिंसा का राम न छूटे ऐसी अवस्था का नाम अप्रत्याख्यान का संवर हूँ।
प्रश्न -- प्रत्याख्यान का संबर किसे कहते हैं ? उत्तर—म तथा स्थावर की हिंसा का गग छूट जावे, सम्पूर्ण परिग्रह छूट जाये जिस कारण से चाय में यथाजान रूप अवस्था हो अर्थात् नशता एवं विकार रहिन हो जिसकी मरुल संयम कहते हैं, परन्तु प्रशस्तगग नटे मी अवस्था का नाम प्रत्यास्थान का संचर है ।
प्रश्न- संचलन का संचर किसको कहते है ?
उत्तर -- सम्पूर्ण कपराय के प्रभाव का नाम अर्थान नगदेश का नाम intre का मंदर है। ऐसी