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जिन सिद्धान्त ]
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प्रश्न- सम्यग्दर्शन में किस प्रकार की श्रद्धा
होती है ?
उत्तर -- पुण्य से धर्म कभी नहीं होता, कर्म के उदय में जो जो अवस्था होती है वह मेरी नहीं हैं, वह जीवतन्त्र की है, मैं जीव तत्र हूं, मैं किसी को मार सकता नहीं हूँ, बचा सकता नहीं हूँ, सुख दुख दे सकता नही हॅ एवं मुझको कोई मारने या बचाने वाला है ही नहीं, सुख दुख दे सकता नहीं, देव गुरू मेरा कल्याण नहीं कर सकता, संसार के कोई पदार्थ इष्ट अनिष्ट नहीं है । ऐसी श्रद्धा सम्यग्दृष्टि को रहती है । यथार्थ में यह सम्यग्दर्शन नहीं है बल्कि सम्यग्ज्ञान है ।
प्रश्न- सम्यग्दर्शन किसको कहते हैं १ उत्तर - मैं मात्र जीव तव हूँ, इस जीव तव के अनुभव का नाम सम्यग्दर्शन है ।
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प्रश्न -- प्रथम किसका सबर होता है ?
उत्तर -- प्रथम मिथ्यात्व का संवर होता है बाद में कपाय का संजर होता है और अन्त में लेश्या का संवर होता है।
प्रश्न- कपाय का संघर कैसे होता है ?
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उत्तर -- अनन्तानुवन्धी का अभाव प्रथम संवर,
अत्पाख्यान का अभाव दूसरा संवर, प्रत्याख्यान का