________________
'जिनं सिद्धान्त ]
१३६
ज्ञान नैगमनय है । जैसे कोई मनुष्य प्रचाल कर रहा है और किसी ने पूछा "क्या कर रहे हो" तो उसने उत्तर 'दिया' "पूजा कर रहा हूँ" । यहाँ पंचाल में पूजा का संकल्प है। उसी क नाम नैगमनय है। प्रश्न- संग्रहनय किसे कहते हैं ?
उत्तर -- अपनी जाति का विरोध नहीं करके अनेक विषयों को एकपने से जो ग्रहण करे उसे संग्रहनय कहते हैं, जैसे जीव कहने से चारों गतियों के जीव का ज्ञान करे।
प्रश्न- व्यवहार नय किसे कहते हैं ?
उत्तर -- जो संग्रहनय से ग्रहणं किये गये पदार्थों का विधि पूर्वक भेद करके ज्ञान करे, जैसे जीव कहने 'से मनुष्य, देव, तिर्यश्च नारकी का अलग अलग ज्ञान करे उसे व्यवहार नय कहते हैं ।
प्रश्न --- पर्यायार्थिक नये के कितने भेद हैं !
उत्तर - चार भेद हैं- (१) ऋजुसूत्र नंय, (२) शब्द नयं, (३) समभिनय और ( ४ ) एवंभूतनय ।
प्रश्न-ऋजुसूत्र नय किसे कहते हैं ?
उत्तर - भूत भविष्य की अपेक्षा न करके वर्तमान पर्याय मात्र को जो ग्रहण करे सो ऋजुसूत्र नय है, जैसे श्रेणिक के जीव को नारकी कहना । प्रश्न - - - शब्दनय किसे कहते हैं ?