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[जिन सिद्धान्त उत्तर---अत्यन्त भिन्न दूरवर्ती पदार्थ को अपना कहना असद्भूत उपचरित व्यवहार है, जैसे यह मेरा पिता है, यह मेरा मन्दिर है, भगवान् लोकालोक को देखते हैं इत्यादि।
प्रश्न-निश्चय नय के और कोई भेद हैं ?
उत्तर-दो भेद हैं (१) द्रव्यार्थिक नय (२) पर्यायाथिक नय।
प्रश्न--द्रव्यार्थिक नय किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो सामान्य को ग्रहण करे उसे द्रव्यार्थिक नय कहते हैं, जैसे आत्मा को ज्ञायक स्वभावी कहना, पुद्गल को जड समावी कहना।
प्रश्न-पर्यायार्थिक नय किसे कहते हैं ?
उत्तर--जो विशेष को ग्रहण करे उसे पर्यायार्थिक नय कहते हैं, जैसे श्रात्मा में, दर्शन ज्ञान चारित्र. कहना, पुद्गल में रूप रस वर्ण कहना।
प्रश्न-द्रव्यार्थिक नय के कितने भेद है?
उचर-तीन भेद हैं (१) नैगमनय (२) संग्रहनय(३) व्यवहार नय।
प्रश्न--नगम नय किसे कहते हैं ? __उत्तर--दो पदार्थों में से एक को गौण. और दूसरे को प्रधान करके भेद अथवा अभेद को विषय करने वाला