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________________ १०७ जिन सिद्धान्त ] करता है । यह निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध है। एवं समयसार सर्व विशुद्ध अधिकार में गाथा नं० ३१२-३१३ में लिखा है कि:चेया उ पयडीयट्ठ उप्पज्जड़ विणस्सई । पयडी वि चेयय उप्पज्जा विणस्सई ।। एवं बंधो उ दुराहपि अएणोएणप्पञ्चया हवे । अप्पणो पयडीय ए संसारो तेण जायए । अर्थः-ज्ञान स्वरूपी आत्मा ज्ञानवरणादि कर्म की प्रकृतियों के निमित्त से उत्पन्न होता है तथा विनाश भी होता है और कर्म प्रकृति भी आत्मा के भावे का निमित्त पाकर उत्पन्न होती है व विनाश को प्राप्त होती है । इसी प्रकार प्रात्मा तथा प्रकृति का दोनों का परस्पर निमित्त से बंध होता है तथा उस बंध से संसार उत्पन्न होता है। इससे सिद्ध होता है कि कर्म के साथ में आत्मा का निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध है तथा आत्मा के भाव के साथ में कार्माण वर्गणा का निमित्त नैमित्तिक संवन्ध है। समयसार गाथा ६८ की टीका में लिखा है कि "कारणानुविधायीनि कार्याणीति कृत्वा यत्रपूर्वका यवा यवा एवेति न्यायेन पुद्गल एव न तु जीवः ॥" अर्थः-जैसा कारण होता है उसी के अनुसार कार्य होता है जैसे जौ से जी ही पैदा होता है अन्य नहीं
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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