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जिन सिद्धान्त
दिखलाया है | लाल आदि रंग रूप पर वस्तु निमित्त है और तद्रूप स्फटिकमणि की अवस्था होना नैमित्तिक है। इस गाया की टीका में कलशा नं० १७५ में श्राचार्य लिखते हैं:
आत्मा अपने रागादिक के निमित्त भाव को कभी नहीं प्राप्त होता है, उस श्रात्मा में रागादिक होने का निमित्त पर द्रव्य का सम्बन्ध ही है । यहाँ सूर्यकान्त मणि का दृष्टान्त दिया है कि जैसे सूर्यकान्तमणि आप ही तो निरूप नहीं परिणमनती परन्तु उसमें सूर्य का किरण रूप होने में निमित्त है वैसे जानना । यह वस्तु का स्वभाव उदय को प्राप्त है, किसी का किया हुआ नहीं है अर्थात् वस्तु स्वभाव ही ऐसा है ।
इसमें कर्म का उदय निमित्त है और आत्मा में तद्रूप अवस्था होना नैमिचिक है । एवं सूर्य की किरण निमित्त है तद्रूप सूर्यकान्तमणि का होना नैमित्तिक है। समयसार कर्म श्रविकार गाया ८० में लिखा है कि जीवपरिणामहेदु कम्मतं पुग्गला परिणमति ।
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पुग्गलकम्मणिमित्तं तदेह जीवो वि परिगम ॥ अर्थ:-जीर के परिणाम का निमित्त पाल पहल द्रव्य कर्म रूप या atra करता है तथा कर्म के निमित्त पाकर जीन भी रूप व्यवस्था चाग्म