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जिन मिहान
हलन चलन निमित्त है और तद्रूप शरीर के परमाणु का हलन चलन होना नैमित्तिक है । (६) जितने श में शरीर के परमाणु लकवाग्रस्त होने के कारण हलन चलन रहित होगा, उतने ही अश में आत्मा का प्रदेश हलन चलन नहीं कर सकता । शरीर के परमाणु निमित्त हैं और आत्मा का प्रदेश नैमित्तिक है ।
प्रश्न - निमित्त के अनुकूल नैमित्तिक की अवस्था होना ही चाहिए, ऐसा कोई श्रागम वाक्य है ? उत्तर --- बहुत है, देखिये समयसार पुन्य पाप अधिकार गाथा नं० १६१-१६२-१६३:सम्मत पडिणिवद्ध मिच्छतं जिरणवरेही परिकहियं । तस्सोदयेय जीवो मिच्छादिडिति णावव्यो || णाणस्य पडिणिवद्ध रणाय जियवरेहि परिकहियं । तस्सोदय जीवो रणायी होदि यायचो ।। चारित पडिणिवद्ध कसायं जिनवरेहि परिकहियं । तरसोदयेण जीवो यवरितो होदि खायत्रो ||
अर्थः सम्यक्त्व का रोकने वाला मिथ्यात्व नामा कर्म है, ऐसा जिनवरदेव ने कहा है । उस मिथ्यात्व नामा कर्म के उदय से यह जीव मिथ्यादृष्टि हो जाता है ऐसा जानना चाहिए | श्रात्मा के ज्ञान को रोकनेवाला ज्ञानाबरणीनामा कर्म है ऐसा जिनवर ने कहा है, उस ज्ञानावरण