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जिन सिद्धान्त
____ उत्तर--जैसे जीव को कंचित् नित्य, कथंचित् अनित्य, कथंचित् सत, कथंचित असत, कथंचित् एक कथंचित् अनेक कहना तादात्म्य-सम्बन्धस्याद्वाद है क्योंकि द्रव्यदृष्टि से जीव नित्य, सत और एक रूप है वह पर्याय दृष्टि से अनित्य, असत और अनेक रूप है। परन्तु जो जोय मात्र नित्य ही, मात्र अनित्य ही, मात्र सत ही, मात्र असत ही, मात्र एक ही, मात्र अनेक हो मानता है वह अज्ञानी है क्योंकि उसने पदार्थ के एक पर्ग को स्वीकार किया, दूसरे धर्म का नाश किया, जत्र कि पदार्थ सामान्य विशेष रूप ही हैं ?
प्रश्न--संयोग-सम्बन्ध-न्यावाद किसे कहते हैं ?
उत्तर---जैसे कथंचिन् यात्मा चेतन प्राण से जीता है, कथंचित् श्रात्मा चार प्राण से जीता है, कचिन्
आत्मा गग का कर्ता है, कथंचित् अान्मा कर्म का का है, कथंचिन् पृटल, कम का करी है, कथंचिन् पुद्गल गग का कनी, गोका नाम योग सम्बन्ध न्यावाद है, परन्तु जो जीव मात्र जीव को चेतन ग्राण से दी जीना मानना . योग मम्मत में जीना नहीं मानना
का मकान मिरगट है, क्योंकि और गम्म को मदन करने । हिमानीला उनी प्रकार का भार