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जिन सिद्धान्त]
उत्तर-जो द्रव्य में गुण और पर्याय है वह द्रव्य और गुण पर्याय उस द्रव्य का कहना उसी का नाम अनेकान्त है । जैसे दर्शन ज्ञान चारित्र आत्मा का कहना अनेकान्त है, परन्तु रूप रस गन्ध वर्ण आत्मा का कहना अनेकान्त नहीं है । ज्ञान, ज्ञानगुण का काम करता है वह अनेकान्त है परन्तु ज्ञान, दर्शन-चारित्र का काम करता है यह कहना अनेकान्त नहीं है । क्रोधादिक आत्मा का कहना सो अनेकान्त है, परन्तु क्रोधादिक पुद्गल का कहना सो अनेकान्त नहीं । व्यय पर्याय व्यय का ही कार्य करता है, यह कहना अनेकान्त है, पर व्यय पर्याय उत्पाद का काम करता है यह कहना अनेकान्त नहीं, क्योंकि अनेकान्त एक एक गुण और एक पर्याय को स्वतंत्र स्वीकार करता है।
प्रश्न-स्याद्वाद किसे कहते हैं ?
उत्तर--अपेक्षा से कथन करना उसी को नाम स्याद्वाद है, क्योंकि संसार के हरेक पदार्थ सामान्य विशेष रूप हैं, सामान्य निकालिक है, विशेष समयवर्ती है । स्याद्वाद दो प्रकार का है (१) तादात्म्य सम्बन्ध स्याद्वाद (२) संयोग सम्बन्ध स्याद्वाद । इन दोनों सन्बन्ध को जो स्वीकार न करे वह मिथ्यादृष्टि है।
प्रश्न--तादात्म्य सम्बन्ध स्याद्वाद किसे कहते हैं ?