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हनवा अर्थ किया है वर्षानाल के नार मामी म भमण का त्याग करके एकत्र रहना। इसका उन्मर्गमाल एम मो बीम दिन कहा है। कारणवश इगम कम और अधिक दिन भी रहना मभव । मीने अनर्गत दिगम्बर्ग में भाद्रमाम वे अन्तिम दन .िना मगनःक्षण पर्व मनाया जाना है। इसका पुगना नाम पर्यषण पर्व ही है। पानी बर मागना को गामने ग्म कर विग्नार में प्रमाश टाला । जापान पार।।
४ नतथं विनारणोग प्रमग ममानार ५वी गाथा तृतीय नरण में मम्बद्ध है। उसके दो पाठ मिला: अग गनमज्म' और 'अपदेशमनमज्न' आचार्ग प्रमननाद नीटी मला गागा का गन्दण व्याख्यान नही है आचार्य जगगन न आगमनमार र TT TIT किया है और उग 'जिणमामण ना पिणाण माना अमननन्द जी न ग व्यायान नहीं वो भी प्रयागनर म TTI IIगान किया। ना लगता ।।१४वी गाथा में कहा , जा बा-गा ।। . ! ग. अननिय प्रविणेग और अमयुक्त दगना उंगे द गय ना..।।।।। गाथा मन पान विणेपणा में म अबद्ध प्रगान मार गिा । र विगगण || । दा विशेषण नियन र गा ! न।।। fro.. अमनना: जी दीका में पूर्गन न बिगाणा गffगा मा ।। अनर्मा। का गमम्म जिन-णामन की जनभान TIPा या पय मागा।ग पर मेगा प्रनीताता है। काटनमा म विगण छिगा । प. जी ने उमी पर विगार ग प्रसार गता। जयगा जी ना पाम्यान किया है. उममे मन पर ना व्यापान नही है यथा शब्द गमय गे वाच्य और ज्ञान ममय में जो परिच्छंद्य है. उस अपदणम वमध्य कहते है। मी नग्ह १० जी ने 'मनमग्न' पर रख कर जो आत्मा को आत्मा के मध्य' अयं किया है वह भी गले नहीं उतरना । गम नी प्रदेण अर्थात् आदि और अन्न महित मध्य में हित अर्थात् आदि अन्न मध्य हिन' अयं अधिक उपयुन जानता है। अमृतचन्द्र जी ने दशवं कलश में गुडनय का बम्प दगन हा मान्मम्वभाव का एक विर्णपण 'आयविमुका' वहा है उन गाथ भी उन अयं की मान बैठ जानी है अन उन चरण का अर्थ अभी भी विचारणीय ही प्रतीत होता है।
. पाचवा प्रमग भापा मम्बन्धी है। आचार्य कुन्दकुन्द की प्राकृत के मम्बन्ध में म्ब० डा. ए. एन. उपाध्याय नं प्रवचनमार की प्रम्नावना में विस्तार में प्रकाश डाला है और वह इस विषय के अधिकारी विद्वान् ।