________________
( झ )
१० जी ने भी उसको देखा है । प० जी का यह लिखना यथार्थ है कि प्राकृत भाषा के ग्रन्थों को भाषा की दृष्टि में मशोधन करना ठीक नही है मस्कृत भाषा का तो एक बघा हुआ स्वरूप है किन्तु प्राकृत भाषा की विविधता में यह संभव नहीं है उसमे अर्थ मे विश्म का भय रहता है ।
६ छठा प्रसग है आत्मा का अमध्यानप्रदेशित्व | यह कोई विवादग्रस्त विषय नहीं है । तत्वार्थवानिक के पाचवे अध्याय के ये सूत्र में अकलकदेव ने द्रव्यों को प्रदेशकल्पना पर विस्तार में प्रकाश डाला है । निश्चयनय मे आत्मा की अमयान प्रदेशी कहा है। जंनदृष्टि से जो सर्वथा अप्रदेशी है वह अवस्तु है किन्तु अकलकदेव ने शुद्ध नय में उपयोग स्वभाव आत्मा को अप्रदेशी कहा है यहाँ अप्रदेशी वा मतलब एक भी प्रदेश न होना नही है किन्तु अखण्ड अनुभव में है । वही शुद्धनय का विषय है।
अन्तिम प्रभग है स्वास्तिक । प० जी ने उस पर नवीन दृष्टि में विचार किया है अभी तक तो यही माना जाना रहा है कि सीधी और आडी दोनां hi जीव और पुद्गल के सम्बन्ध की सूचक है और उसका फल चार गनियो में भ्रमण है। उसी का प्रतीक स्वास्तिक है। किन्तु प० जी ने उसे बनारिमगल में जोड़ा है यह प्रमग भी पहने योग्य है । १० जो के उक्त प्रसगां के सभी विवेचन पढ़ने योग्य है ।
वाराणसी
२७-२-८२
(सिद्धानाचार्य ) कैलाशचन्द्र शास्त्री