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सिद्धत्व पर्याय में उस पर्याय के उपादान कारमधून पुगात्माबर क्षेत्र का परिमाण-परमदेह से किंचित् न्यून है जो कि तलाव (निन शरीर) परिमाण ही है, एक प्रदेश परिमाण नहीं ।
किचिदूणचरमनगरप्रमाणम्य मिहत्वपर्यापम्योपासनकामनगमद्रव्य तत्पर्यायप्रमाणमेव ।'
दृष्यसंग्रह में संका उठाई गई है कि मिड-आत्मा को परिमाणको कहा ? वहाँ स्पष्ट किया है कि'स्वदेहमिनिम्बापनं नैयायिकमीमांमकमान्यायं प्रनि ।'
.-पही गाला टीका म्मरण रहे कि कोई आत्मा को अणमात्र (अप्रदेणी) कहते है की कोई व्यापक । उनकी मान्यता ममीचीन नहीं, यहाँ यह म्पष्ट किया है।
निश्चयन लोकमात्रोऽपि । विशिष्टाववाहपरिणाम-क्तियुक्तावान् नामकर्म निवृनमणुमहनपरीधिनिष्ठन् व्यवहारण देहमानी। .. (1०ही.)
निश्चयेन लोकाकाणमिनामन्येयप्रदेणमिमापि व्यवहारेज नगर. नामकर्मोदयानिनाणमहमागेप्रमाणवान बदेशमात्री भनि ।'.--
• (नात्पर्य १०) २७, पदि उपयोगावचा में आम्मा अप्रती माना जाना नो वात्मा के अदा होने में यह भी मानना पांगा कि आरम प्रदेश बहन गरीर में मिकाकर अप्रदेणमात्र-अवगाह में हो जाते है और पूरा गरील भाग आत्माहीन (पम्प) रहना है- जमा कि पढ़ने-सुनने में नहीं आया।
छपम्प का मान प्रमाण और नयर्गाभन है और केवली भगवान का जान प्रमाणप है। नय का भाव अगवाही भोर प्रमाण का भाव सर्वग्राही है। दोनों में ही बनेकान्त की प्रवृत्ति है, अनेकान्न की अवहेलना नही की गई 'अनेकान्नेऽप्यनेकान'। प्रमंग में भी इसी आधार परमात्मा के मममातप्रदेणत्व का विधान किया गया है नपाहि -
अनेकान्न की दो कोटिया है। एक ऐसी कोटि जिममें अपेमादृष्टि में अंगों को क्रमम: जाना जाय और इमरी कोटि वह जिममें मकान को युगपन प्रत्यक्ष जाना जाय । प्रथम कोटि में पी पदापों को जानने पाने पारमामधारी नक के ममी छपम्प बाते है। इन मभीमान परमहावापेली बांधिकार कमिक होते हैं। प्रत्यक्ष होने पर भी वेग-अत्यन' ही कहनाने मरे पदों में इन ममी को एक समय में एक प्रदगपाही भी माना जा सकता है यानी ये