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यदि ऐमा माना जाय कि केवल परमी में ही पyषन है तो पyषण को ७-८ या कम-अधिक दिन मनाने का कोई अर्ष ही नही रह जाता, और ना ही अष्टमी के प्रोषध की अनिवार्यता मिड होती है जबकि अष्टमी को नियम से प्रोषध होना चाहिए। हा, पचमी से पर्दूषण हो तो आगे के दिनों में आठ या दस दिनों की गणना को पूरा किया जा मकता है और अष्टमी को प्रोषध भी किया जा सकता है। सम्भवत इमोलिए कोषकार ने 'भारपद शुक्ल पक्षम्या अनतर' पृ० २५३ और भाद्रपद शुक्ला पचम्या कार्तिक पूर्णिमा यावदित्यर्ष' पृ० २५८ मे लिख दिया है । यहा पवमी विभक्ति की स्वीकृति से स्पष्ट होना है कि 'पचमीए' का अर्थ 'पचमी में होना चाहिए । इम अर्थ की ग्वीकृति में अप्टमी के प्रोषध के नियम की पूनि भी हो जाती है। क्योकि पर्व में अष्टमी के दिन का ममावेश इमी गेनि में शक्य है। अनन्नर' मे तो मन्देह को ग्यान ही नही रह जाता वि पचमी मे पर्यपण शुभ होता है और पर्यषण के जपन्य काल ७० दिन की पूनि भी दमी भौति होती है।
दिगम्बर जैनो में कानिक फाल्गुन और आपात में अन्न के आठ दिनो मे (अप्टमी मे पूणिमा) अष्टाह्निका पर्व माने है ऐमी मान्यता है कि देवगण नन्दीश्वर द्वीप में इन दिनों अकृतिम जिन मन्दिगं में विम्बी के दर्शन-पूजन को जाते है । देवो के नन्दीश्वर द्वीप जाने की मान्यना ध्वनाम्बर्ग में भी है। येनाम्बर्ग की अष्टाह्निका को पर्व निथिया चैत्र मुद्री ८ मे १५ तक नपा आमोग मुदी ८ मे १५ तक है। नीमरी निषि जो (मम्भवत ) भाद्र वदी १३ मे मुदी ५ नक प्रचलित है, होगी। यह नीमगे निथि मृदी ८ मे प्रारम्भ क्यों नही यह विचारणीय ही है- जब कि दो बार की निथिया अष्टमी में गुन है।
हो मकता है- नीर्थकर महावीर के द्वाग वर्षा ऋतु के ५० दिन बाद पर्यपण मनाने में ही यह तिथि परिवर्तन हुभा हो । पर यदि ५० दिन के भीतर किमी भी दि शुरू करने की बात नब हम अप्पालिका को पचमी के पूर्व में शुरू न कर पचमी में ही गुरू वग्ना युपित मगन है । ऐमा करने में 'मबीमगए माम वठक्कने (बीनने पर) की बात भी रह जाती है और 'मग्गिदिया
१. मुनियों का वर्षावाम चतुर्माम लगने में लेकर ५० दिन बीननं नक कभी भी
प्रारम्भ हो मकना है अर्थात् अपान गुक्ला १८ में लककर भाद्रपद शुक्ला ५नक किमी भी दिन शुरु हा मकना है।'
-जैन-आचार (महना) पृ० १८७ ।