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भगवान के पंचमहायत 'समये प्रनिपोषा ग्यापि ययाचि ।। माहम्ध्ये नोचित गए, मत्रोद्गार इवानुगो ।
-(वि . पु. १० पर्व ८1१०५ हेमपन्नाचार्य (७) नीकर नेमिनाय को एक भविष्यवाणी में भी ब्रह्मवयं को बाल मष्ट ।
और अपरिग्रह में उसे नहीं जोला गया है। मग भी ज्ञान होता है कि ब्रह्मचर्य पृषक कप मे स्वतन्त्र कप में माना जाता रहा है .
'पुग नमिजिनेनोक्न नमिरहन् भविष्यनि । कुमार एव मन्नेव. नार्थों गग्र्याश्रयाय नत् ॥३५॥ प्रतीक्षमाण समय जन्मनो एवार्यवम् ।
अदाम्यत परिषज्या मान्यथा कृष्ण चिन्मय ॥६॥ उक्त आकाशवाणी है. जो अगिटनेमि मबध में नोयंकर नमिनाथ नाग कभी (पहिल) की गई भविष्यवाणी को इंगित करनी है। मग मिट है कि पर्व की महिमा नीकर के समय में भी पृथक मप में गाई जाती रही है, अपरिग्रह गभित प में नहीं। (८) भगवान पार्श्वनाथ में पहिले के तीर्थकर आंगटमि में थाव पुत्र को दीक्षा
देकर अपना शिप्य बनाया और उन्हें १०. शिष्याग्वार वाला करके बिहार की आज्ञा दी। थावांपुत्र आन शिव के गा बिहार करन-करम मोगन्धिका नगरी में पहुँचे । उग नगरी में मुनर्णन नामक मंठ रहता था। उम मंठ ने पहिले कभी किमी 'णुक' नामक मन्यामी में मान्यमन का उपदंश मुना था और यह मनियमन का श्रवानी हो गया था। जब वर उनके पास गया। थाव_पुत्र को देखकर मुणन मंठ ने पूछा कि आपका धर्म कया है तब थावापुत्र ने धमापदण में "पचमहावन प धर्म का उपदेन किया। यदि बीच के नीर्षकगं के ममय में चानुम ही धनी गाईमवे नीयंकर के मामान् मिप्य ने पवमहावना को धर्म क्या कहा ? चान्यांम मप में ही उनका व्यख्यान करने । इमका निष्कर्ष ना यही निकलना है कि परमहावतों का पूर्व मभी नीयंकग के समय में एक जमा चलन ही रहा है। प्रमग का मूल इम भानि
'नर्मण पावन्नापुन अणगारं अगहनी अग्निमिम्ब नहानवाण अंगण अनिए मामाइयपाइयार बोहमपुवाइ अहिज्यान बहहिं जाव पात्य विहरति ॥२६॥
'तसं बरहा गरिनेमी पावसापुत्तल अगनारस त इन्चाइय