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यदि नीकर को दोनों में से एक ही ग्बना इप्ट होता है तो वे धर्मों मे पा के म्यान पर नो का ही विधान करनं । आगमी में जो सयम कहे है वे है -
'मनी य महप बग्गव, मुत्ती नब मजमे य बोधम्वे ।
मन्ब माय आकिषण र बम व जड धम्मो ।' (0) पार्श्व में पूर्व नीर्षकर नेमिनाथ ने परदन को जो उपदण दिया है उममे
भी पर महावना की पुष्टि होती है। उन्होंने 'मावच योगविनि' को चाग्त्रि कहा । और अययो (पापी) को मण्या मदा पाच रही है अन पाच पापा की पृथक्-बिर्गन पचमहावना को ही मिड कर मकनी है। ग्लांक हम प्रकार है
सापड यागविनिश्चारित्र मुक्तिकारणम् । मन्मिना यतीन्द्राणा देणन म्यादगाग्णिाम् ॥
-(त्रि. म. पु० च० पर्व - सर्ग) (१) दीक्षा ग्रहण करने ममय नीर्षकर पाचो पापा के मर्वथा त्याग की घोषणा
कग्नं । पग्पिह गभिन अब्रह्म जम चार के त्याग की घोषणा नही करने और न कही पापा की चार मन्या का विधान ही किया गया है। नीर्षकगे की पापणा है
'मब्य में अकरणिज्ज पाव कम्म ।' (6) मुमनिनाप के जीव ने पुरुषमिह गजाप पूर्वपर्याय में विनयनदन आचार्य
मे पाच महावना वा उपदेण मुना- 'मीलमडयो उण धम्मो परमहव्वय परिपानण ननि मद्दव-अग्जव मनोमचिनथिरीकरण..।'
...चउप्पण्ण महापुरुष चग्यि पृ०७३ (५) नौ नीकर मृविधिनाय के उपदेण में मठ शलाका पुरुष चरित्र में पापी
की मल्या ५ है अन फलिन होता है कि पापपरिहार कप महावन भी ५ही
"frमाननम्नेयाजामहारम्भपरिपहा ।'-१२०,
-त्रि० प्र० पु० च० पर्व । मर्ग ७ पृ. ६३ (६) तीर्थकर अरिष्टनेमि के समय में ब्रह्मचर्य की गणना म्बनत्र कम से होती
रही है-अपरिग्रह में नही. ऐसे भी प्रमाण मोजूद है। उस समय भी पूर्ण ब्रह्मचर्य की बात (मुनि अवस्था मे) पृषक रूप से निर्दिष्ट होती रही है। विवाह के प्रमग में (जब नेमिनाप गजुल मे विवाह नहीं करना चाहले नब रायपगने की) जन्य गनिया नेमिनाप से कहती है