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म चिारणीय प्रसंग निमादि कल्पिक, प्रत्येक बुद्ध, म्वयंबुद्ध, गुरुबोधिन प्रमुख गुणवन माधुओं को भी ग्रहण किये है। -विवाहपत्ति [भगवनी] पृ० २, अमो० ऋ०
हो, 'स्वचिन् नमो माग मश्वमाहणं इति पाठ:'-के मंदर्भ में यह उल्लेख अवश्य मिलता है कि- 'नाग' का ग्रहण, गरुड-गण आदि मात्र का ही ब्रहण न माना जाय, आँगन ममम्न माधत्री का प्रण किया जाय-हम भाव में किया गया है। मग 'पर्वानन्' का अर्थ भगवनी में अन्यत्र ग्थलो मे ही लिया मायगा भगवनी में नही।
एक ग्थान पर 'बी निधी' का अर्थ ऋपभदेव किया गया है। अनुमान हना है कि मा अयं किमी प्रयोजन नाम की पूर्ति के लिए किया गया होगा। अन्यथा, निगिना, लिपि ही है उमं ऋषभदेव के अर्थ में कंमें भी नहीं लिया गा माना है। लिपि' मूनि-मात्र है और उसे नमन करना मूर्तिपूजा का घातक गता है. शायद, दगी दांप के निवारण के लिए किन्ही में मा अर्ष किया गया हो अम्न, जो भी हो म्थन हम प्रकार है
यहाँ पर मूत्रकार ने अक्षर स्थापनाप लिपि को नमकार नही करने लिपि बनाने वान ऋषभदेव ग्वामी को नमस्कार किया है और भी वीर. निर्वाण पछि • वर्ष में पुम्नकामन ज्ञान हुआ, इममे लिपि को नमग्कार करना नहीं मभवता है।'
. विवाह गणनि [वही] पृ० ३ टिप्पण अमा० ऋ० उसन प्रमग में यह नो स्पष्ट है कि पटना डागम एवं आगम परम्पग में मभी जगह भगवती के अििग्कन | णमोकार मत्र की एकरूपता अक्षण्ण रही है-- उमप में नही भिन्नता नहीं है । अर्थात् आगम-परम्पग की दृष्टि से भगवनी का पाठभेद मेल नहीं खाना । मम्भव है--विद्वानों ने उम पर विचार किया हो या 'नमो बभीए-लिबीए पद मानने हुए और मूलमत्र में लोए' पद न मानने हा भी मूलमत्र की अनादि एकरूपता पर अपनी महमति प्रकट की हो।
ग्मरण रहे कि उक्त मभी प्रमग णमोकार मत्र के 'अनादिव' की दिशा में प्रग्नत किया गया है। म्बनत्रम्प में जन-आगमों में वर्णिन मभी मंत्रों का हम मम्मान करने है. चाहे वे (बीनग मार्ग मे) किमी गनि मे-किन्ही गन्दी और गठनों में बड क्यो न किये गये हों। बाह्मी लिपि अनादि नही है इस सम्बन्ध में निम्न प्रमग ही पर्याप्त है-- 'लेह नियोपिहाण. जिणेण भोएपहिपकरे ।
-गा. निव० ४,