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'जनपदसंग्रह
जाके गीत न नृत्य न मृत्यु न, बैलतनो नं सवारा । नहि कोपीन ने काम कामिनी, नहिं धन धान्य पसारा ॥सोई है || २|| सो तो प्रगट समस्त वस्तुको देखन जाननहारा । भागचन्द ताहीको ध्यावत, पूजत बारंबारा ॥ सोई है ० ॥ ३ ॥
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समझाओ जी आज कोई करुनाधरन, आये थे व्याहिन काज वे तो भये हैं विरागी पशूया लख लम् ||टेक || विमल चरन पागी. करन विषय त्यागी, उनने परम ज्ञानानंद चख चग्व ॥ समझायो० ॥ १ ॥ सुभग मुकति नारी, उनहिं लगी प्यारी, हमसों नेह कछू नहीं रख रख ।। समझायो ० ॥२॥ वे त्रिभुवनस्वामी, मदनरहित नामी, उनके अमर पूजे पढ़ नख नख ॥ समझायो० ॥३॥ भागचन्द मैं तो तलफत अति-जैसे, जलसों तुरत न्यारी जक झख झख ॥ समझायो० ॥४॥
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गिरनारीपै ध्यान लगाया, चल सखि नेमिचन्द मुनिराया ॥ टेक ॥ सँग भुजंग रंग उन लखि तजि, शत्रु अनंग भगाया | बाल ब्रह्मचारी, व्रतधारी, शिवनारी चित लाया || गिरनारी० || १ || मुद्रा नगन मोहनिद्रा विन, नासाहग मन भाया । आसन धन्य अनन्य वन्य चित, पुष्ट (?) धूल सम थाया || गिरनारी ०||२|| जाहि