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-द्वितीयभाग |
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पुरन्दर पूजन आये, सुन्दर ' पुन्य उपाया । भागचन्द मम प्राननाथ सो, और न मोह सुहाया || गि० ॥३॥
હ્રદ
राग दीपचन्दी परज |
are भये ब्रह्मचारी, सखी घर मैं न रहोंगी ॥ टेक ॥ पाणिग्रहण काज प्रभु आये, सहित समाज अपारी । ततछिन ही वैराग भये है, पशुकरुना डर धारी ॥ नाथ० ॥ एक सहस्र अष्टलच्छनजुत, वा छविक बलिहारी । ज्ञानानंद मगन निशिवासर, हमरी सुरत विसारी ||नाथ ||२|| मैं भी जिनदीक्षा परि हाँ अबजाकर श्रीगिरनारी । भागचन्द हमि भनत सग्विनसों, उग्रसेनकी कुमारी ॥ नाथ ०॥ ३ ॥
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राग दीपचन्दी कानेर | -
जानके सुज्ञानी, जैनवानीकी सरधा लाइये ॥टेक॥ जा विन काल अनंते भ्रमता, सुख न मिले कहू पानी !! जानके० ॥ १ ॥ स्वपर विवेक अखंड मिलत जाहीके सरवानी || जानके० ॥ २ ॥ अस्त्रिलप्रमानसिद्ध अविरुद्धत, स्यात्पद शुद्ध निशानी ॥ जानके ० ॥ ३ ॥ भागचन्द सत्यारथ जानी, परमधरमरजधानी || जानके० ॥ ४ ॥
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