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जैनपदसंग्रह |
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फूली बसन्त जहँ आदीसुर शिवपुर गये ॥ टेक ॥ भारतभूप बहत्तर जिनगृह, कनकमयी सव निरंमये ॥ फूली ० ॥ १ ॥ तीन चौवीस रतनमय प्रतिमा, अंग रंग जे जे भये । सिद्ध समान सीस सम सबके, अदभुत शोभा परिनये ॥ फूली० ॥ २ ॥ वालि आदि. आइंठ कोड़ मुनि, सबनि मुकति सुख अनुभये । तीन अठाई फागनि (१) खग मिल, गावैं गीत नये नये ॥ फूली ० ॥३॥ वसुं जोजन वसु पैड़ी (2) गंगा, फिरी बहुतसुरआलये । द्यानत सो कैलास नमौं हौं, गुन कापै जी वरनये ॥ फूली ० ॥ ४॥ : :
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तुम ज्ञानविभव फूली वसन्त, यह मन मधुकर सुखसों रमन्त ॥ टेक ॥ दिन बड़े भये वैराग भावं, मिथ्यामत रजनीको घटाव ॥ तुम० ॥ १ ॥ बहु फूली फैली सुरुचि वेलि, ज्ञाताजन समता संग केलि ॥ तुम ० ॥ २ ॥ द्यानत वानी पिके मधुररूप, सुरंनरपशुआनँदघनसुरूप ॥ तुम० ॥ ३ ॥
. १ जहांः (कैलाशगिरिपर) । २ बनवाये । ३ साड़े तीन कोटि । आठ । ५ किसेस । ६ जावें । ७ भ्रमर । ८ रानि । ९. कोयल |