________________
जैन पदसागर प्रथमभाग निरखत०॥टेक ॥ प्रकटी निर्जआनकी, पिछान ज्ञान-भानकी, कला उदोत होत काम जामिनी पलाई। निरखत० ॥ १ ॥ सास्वत आनंदस्वाद, पायो विनश्यो विषाद, आनमें अनिष्ट इष्ट, कल्पना नसाई । निरखत०॥ २ ॥ साधी निजसाधकी, समाधि मोहव्याधिकी, उपाधि को विराधिक, अराधना सुहाई । निरखत० ॥३॥ धन दिन छिन आज सुगुनि, चिन्ते जिनराज अब, सुधरे सब काजं दौल अचल ऋद्धि पाई । निरखत ॥४॥
(७) जगदानंदन जिन अभिनंदन, पद-अरविंद नमूं मैं तेरे, जगदा०॥टेक॥ अरुन वरन अघताप हरनवर, वितरन कुशल सुसरन बडेरे। पद्मासन मदनमदभंजन, रंजन मुनि-जन-मनअलिकेरे। जगदा०॥१॥ ये गुन सुन मैं सरनै . १ निजपरकी । २.कामरूपी रात्रि । ३ अपने मनकी इच्छानुसार । लक्ष्मी-शोमाके घर । ५ भ्रमरके। .
-