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- 'हजूरी पद-संग्रह। १०३ दोष केई, थूल कहूं पुकार । तुम अनंत जनम निहारे, दोष अपरंपार ॥ प्रभुजी० ॥३॥ नांव दीनदयाल तेरो, तरनतारनहार । बंदना द्यानतः करत है, ज्यों बनै यों तार ॥ प्रभुजी०॥४॥
(११८) ... . .. प्रभुजी प्रभू सुपास जगंवासतें दास निकास ॥प्रभु०॥ टेक ॥ इदक स्वाम पनिंदके स्वाम, नरिंदके चंदके खाम । तुमको छांडके किस जावें, कौनको ढूंढें धाम ॥ प्रभुजी०॥ १॥ भूप सोई दुख दूर करै है, साह सों दे दान । वैद सोई सब रोग मिटावै, तुम्ही सबै गुनवान ।। प्रभुजी० ॥२॥ चोर अंजनसे तार लिये हैं, जार कीचसे राव । हम-तो सेवक सेव करें हैं, नाम जपै मन चाव ॥ प्रभुजी० ॥३॥ तुम समान हुये न होंगे, देव त्रिलोकमशार । तुम दयाल देवोंके देव हो, धानतको सुखकार ॥ प्रभुजी०॥४॥ तेरी भक्ति बिना धिक है जीवनी ॥तेरी०॥