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व जैनपदसांगर प्रथमभाग॥ टेक॥जैसे वेगारी दरजीकों,पर घर कपडोंका सीवना। तेरी ॥१॥ मुकुट बिना अंबर सब. पहिरे, जैसे भोजनसें.घीव ना। तेरी॥२॥ धाचत भूप.बिना सब सेना, जैसैं मंदिरकी नीव . ना॥ तेरी०॥३॥:..: :- (१२०:) :: :: :उपननइंच हजूरीपदसंग्रह। . : . म्हे तोथांपरवारी; वारी वीतरागीजी,शांत छवी शांकी आनंदकारीजी० ॥ हेंतो॥टेक। इंद नारदः फनिंद मिलि सेवत, मुनि सेवत ऋषिः धारीजी ॥ म्हैतो० ॥२॥ लखि अविकारी परउपकारी, लोकालोक निहारीजी ॥म्हैतो॥२॥ संब त्यागीजी कृपा तिहारी, बुधजन ले बलिहारीजी ॥ म्हें तो० ॥३॥ . . (१२१) .. :: :राग-अलहिया बिलावल- ताल धीमा तेताला । . .
श्रीजिनपूर्जनको हम आए, पूजत ही दुखद्वंद मिटाए ॥ श्रीजिनगाटेका विकलप गयो प्रगट