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________________ ७० जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व पति की स्पष्ट और निविरोध स्वीकृतियाँ उसमें संघर्ष उत्पन्न करती हैं । वह एक विचित्र स्थिति में पड़कर अपने जीवन की गाड़ी को किसी प्रकार से आगे ढकेलती हुई प्रतीत होती है । इस प्रकार से कथा का प्रारम्भ ही इतनी गतिहीनता और शिथिलता के साथ होता है कि उसकी भावी संभावनायें बहुत अधिक विश्वसनीय नहीं रह जाती, कथा के सूत्र अब फैलते हैं, परन्तु उनमें कोई तनाव नहीं प्रतीत होता । एक पुत्र के जन्म की सूचना भी प्रासंगिक रूप से की जाती है। कथा में खिंचाव उस समय से उत्पन्न होता है, जब एक क्रांतिकारी युवक वहाँ नौकरी करने आता है और. बाद में पता चलता है कि वह गिरफ्तार हो गया है । यों यह घटना अधिक महत्त्व की नहीं है, परन्तु कथा में मोड़ और गतिशीलता लाने की दृष्टि से इसका महत्त्व बहुत अधिक है । अब सुखदा स्वयं भी क्रान्ति के क्षेत्र में प्रविष्ट होती है। हरीश और लाल आदि पात्रों का कथा में प्रवेश होता है। ये पात्र अत्यन्त नाटकीयता का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं । सुखदा लाल की ओर आकर्षित होती है और अनेक नाटकीय मोड़ों के बाद वह पति को त्याग कर अस्पताल में जाकर भरती हो जाती है, इस प्रकार से शिल्प रूप की दृष्टि से यह एक नवीन प्रयोग अवश्य है, परन्तु कथा की अस्थिरता और शिथिलता इसके प्रारम्भ और अंत में समान रूप से विद्यमान हैं, जो किसी सीमा तक इस कृति की अशक्ति का कारण भी है। "विवर्त्त'' के कथानक का केन्द्र जितेन नामक पात्र का जीवन है, उसकी सामान्य पारिवारिक स्थिति के परिचय से इस उपन्यास की कथा का व्यावहारिक रूप में प्रारम्भ होता है, उसकी असाधारण प्रसिद्धि आदि बता कर लेखक कथा विकास का भावी मागं खोलता है । भवनमोहिनी के कथानक में प्रवेश से उस में गति अाती है, परन्तु इस मूत्र की सम्भावनामों का तब अन्त हो जाता है-जब भुवनमोहिनी जितेन से विवाह न करके नरेशचन्द्र की पत्नी बन जाती है । जितेन का असफल प्रेम उसे क्रान्तिकारी दल में सम्मिलित हो जाने की प्रेरणा देता है । चार वर्ष के बाद जितेन का पाना, शरण पाना, भुवनमोहिनी के गहने चुरा कर भागना, उसके दल वालों का भुवनमोहिनी को पकड़ ले जाना, जितेन का पुलिस को समपण, आदि घटनायें क्रमशः घटित होती हैं । कथानक का अन्त भी इन्हीं विविध घटनाओं के जाल में बंध कर अाकस्मिक रूप से होता है। 'व्यतीत' का नायक कवि जयंत है। वह अपने जीवन की प्रौढ़ावस्था को पहुँच कर अपने आपको कुछ टूटा-सा अनुभव करता है, अनिता उसके प्रति प्रेम-भाव रखती है, परन्तु उसका विवाह पुरी से हो गया है । जयंत जीवन से विरक्त होकर किसी प्रकार दिन गुजारता रहता है । वह पचहत्तर रुपये की एक नौकरी भी कर लेता है। पिता की इसी बीच मृत्यु हो जाने पर उसे जो रुपया मिलता है, वह भी वह अपनी बड़ी बहिन को दे देता है । जयंत के मालिक को पता चलता है कि उसका सम्बन्ध पुरी से है, तो
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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