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जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व भग्न होने में ही है।
जैनेन्द्र के वस्तु-भाग में कलाकार बहुत आगे रहता है। हमारी प्रांखों की ओर नहीं रहता । निरन्तर वह अपने पात्रों के भावों का विश्लेषण करने में निमग्न है। 'परख' में अवश्य अनेक नाट्य-दृश्य हैं, जिनमें हम कहानीकार को भूल-से जाते हैं।
जैनेन्द्र के पात्रों में चार पुरुष और तीन स्त्री विशेष उल्लेखनीय हैं । सत्यधन और बिहारी, श्रीकान्त और हरिप्रसन्न इस प्रकार आमने-सामने रखे गये हैं कि एक दूसरे के चरित्र पर प्रकाश पड़े । जैनेन्द्र मनु यों का चित्रण करते हैं । देवता और दानवों में उन्हें विश्वाग नहीं। परख' की भूमिका में ग्राप लिखते हैं, 'सभी पात्रों को मैंने अपने हृदय की सहानुभूति दी है । जहाँ यह नहीं कर पाया हूँ, उसी स्थल पर, समझता हूँ, मैं चूका हूँ। दुनिया में कौन है जो बुरा होना चाहता है--और कौन है, जो बुरा नहीं है, अच्छा ही अच्छा है ? न कोई देवता है, न पशु । सव आदमी ही हैं, देवता से कम और पशु से ऊपर ।'
फिर भी हमें जैसे लगता है कि सत्यधन अपने आदर्श से गिर गये, जीवन की 'परख' में पूरे नहीं उतरे और बिहारी कुछ अपने से भी ऊँचा उठ गया । सत्यधन की भाँति ही 'परिगीता' में शेख र अपने वचन से डिगकर पथ भ्रष्ट हो गया था । दूर पालोक देखकर पतंग के समान वह उधर ही ढल पड़ा। बिहारी का चरित्र कट्टो ने खूब समझा है।
_ 'तुममें तो कुछ समझने को है ही नहीं । जो वाहर है, वही भीतर है। भीतर भी वही विनोद का झरना झरता रहता है, जिसका प्राधा जल आँसू का और प्राधा हँसी का है, और जिसमें से हर बात पार-पार दिखाई देती है।'
___ श्रीकान्त और हरिप्रसन्न भी इसी प्रकार एक-दूसरे की स्निग्ध सौम्यता और उग्र तेजस्विता को और भी गहरी दिखाते हैं। श्रीकान्त हमको बंगाल के अमर कलाकारों का अपने नाम के अतिरिक्त भी और कारणवश स्मरण दिलाता है । उसके चरित्र में वही गंभीर सरलता है, जो हमें बड़े साहित्य के पात्रों में मिलती है । हरि. प्रसन्न अग्नि के समान प्रवर और प्रचण्ड हैं । गौरमोहन का उसे सूक्ष्म रूप समझना चाहिये । क्रान्ति के युग का वह प्रतिनिधि है । वह कहता है -- 'अाज और कल के बीच में बन्द हम नहीं रहेंगे। शाश्वत को भी छुयेंगे । सनातन और अनन्त को भी हम चखेंगे । तुमने बनी-बनाई राह सामने कर दी है । वह हमें कुछ भी दूर नहीं ले जाती। हमारा मार्ग अनन्त है और यह तुम्हारी राह अपनी समाप्ति पर संतुष्ट पारिवारिकजीवन देकर हमें भुलावे में डाल देती है।'
इन पात्रों के चरित्र में कठोर मनोवैज्ञानिक सत्य है । इनका स्थान हमारे