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जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व दिनों-महीनों में आज भी कभी उधर जाता है-उस गली से होकर गुजरता हूँ । देखता हूँ-सब कुछ वैसा ही है—जैसा दो साल दस साल, बीस साल पहले था।
दुनिया की दौड़ में कौन आगे निकलता है-रुकने वाला या भागने वाला। ग्लोब या पृथ्वी... ! साहित्यकार या साहित्य कार । सफेद बर्फानी चादर से ढंकी एक झील । एक साहित्यकार ...।
"-भई झील की गहराई तुम जानते हो !" "नहीं-नहीं ! हिम से ढंके पानी की गहराई नापना अपने वश की बात नहीं।"