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________________ १८ "कहीं एप्लाइ किया है ?' "जी हां । रेडियो में वायस - टैस्ट होने वाला है । ... "और "और"।" "अमुक सम्पादक से तुम मिले । अमुक-अमुक स्थानों में तुम्हारी रचनाएँ छप सकती हैं । छपना प्रतिबिम्ब है । जब तक छपेंगी नहीं, तुम कैसे जान सकते हो कि तुम कैसा लिखते हो ।" टाल्स्टाय, प्रेमचन्द आदि बहुत से साहित्यकारों के बहुत से दृष्टान्त आते हैं । — " प्रेमचन्द से जब मैं मिला तो ऐसा ही कुछ मैंने भी कहा था । " जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व मैं दृष्टान्तों से ऊब चुका " तुम्हारे हाथ में क्या है ?" "जी, कुछ नहीं, कुछ नहीं ।" मैं खिसिया कर कहता हूं । "कुछ तो है ।" "जी हूं हूं - कुछ नहीं ।" "अरे, वाह कुछ क्यों नहीं ।" "जी, यों ही कुछ लिखा था । बस यों ही ।" " दिखलाओ ।" क्या करूं मुझे सूझता नहीं । क्षण भर किंकर्त्तव्यविमूढ़ खड़ा रहता हूं | कैस कहूँ कि यह पढ़ने योग्य कहानी नहीं है । - ऐसा भी कहीं हो सकता है । " अच्छा छोड़ जाश्रो । हम देखेगे । तीन बजे ग्राना । ७।३६ हमारे घर ।" मैं बाहर 'घोड़े वाले पार्क' में पड़ा पड़ा जेठ- श्राषाढ़ के तपते तीन घंटे गुज़ार | चलने लगता हूं । देता हूँ । तीन बजने वाले हैं। समय की ओर से मैं बहुत सतर्क हूं । न तीन बजने से एक मिनट कम हो, न ग्रधिक । ७।३६ के दरवाजे खटखटाता हूँ । श्र " भई, कहानी देख गया । अच्छी है । अमुक सम्पादक के पास जाओ । कहना उन्होंने भेजा है । कहना कि वह मुझे फ़ोन कर लें ।" " जी यह तो कुछ नहीं । यह भी कहीं छप सकती है ?" ! तुम कैसे कहते हो । “च्च् ं ० O "" O "इन्हें जानते हो ?" दीवार की ओर इंगित है । एक चित्र टंगा है— रंगीन । शोभियाना । कपास की तरह खिली दाढ़ी, खादी की लोई प्रोढ़े । सुन्दर काला फ्रेम । फोम के ऊपर सुनहरे तारों की चमचमाती माला पड़ी है, जो नीचे तक लटक रही है । गांधी जी के चित्र के अलावा बस यही एक चित्र है जो नीली दीवार पर टंगा है।
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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