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________________ AARA बाल जैनेन्द्र अवसर मिलता तो वह अच्छे साहित्यकार सिद्ध हो सकते थे और अच्छे इंजीनियर भी। यह थे जैनेन्द्रकुमार के पिता और उनकी इस देन से जो भी आज तक हमने पाया, वह इतना नहीं है कि हमें कुछ अचरज हो । जैनेन्द्रकुमार का जन्म सन् १९०४ की सकट चौथ को हुना। अभी नाम रखने का दिन भी न पाया था कि बाल-जैनेन्द्र के माता निकल आई । इतना ही अच्छा हुआ कि वह बहुत ज़ोर की न थी, पर वह दृश्य हमारी आंखों के सामने है जब बाल-जैनेन्द्र अपनी कोहनी खाट पर टेक कर, बड़ी कोशिश से हाथ उठाकर और सिर्फ कलाई पर हाथ मोड़कर अपने चेहरे पर की मक्खी उड़ाता था । हो सकता है उस काम में उसके लिये बहुत बड़ी कोशिश हो रही हो, पर हमारे लिये तो वह तमाशा ही था । उन दिनों हम १६ वर्ष के थे, पर किसी वजह से सोहर जाने से न रुक सकते थे। इसलिये हम और जैनेन्द्रकुमार की मां दोनों ही घंटों बाल-जैनेन्द्र के यह खेल देखा करते थे । हम चाहते तो मवखी उड़ा सकते थे और कभी-कभी उड़ा भी देते थे, पर मुह पर पड़ी मक्खी को तो उड़ाता देखने में ही मज़ा आता था । बाल-जैनेन्द्र की उस समय की हरकतों को देखकर हम न जाने अपने मन में क्या-क्या सोचा करते थे । खैर, छटे दिन नाम रखने का वक्त पाया और पंडित ने यह भविष्य-वाणी की कि बाल-जैनेन्द्र अपने बाप के लिये बहत भारी साबित होगा । उसका यह कहना था कि बाल जैनेन्द्र अपने बाप की निगाहों से उतर गये और सन् १९०७ में जब वह बीमार पड़े और बाल-जैनेन्द्र को उनकी गोद में दिया गया तो वह उसको थोड़ी देर ही ले पाये थे कि उनको कुछ तकलीफ शुरू हुई और उन्होंने तुरंत ही बाल जैनेन्द्र को यह कहकर कि यह मुझे खाकर ही रहेगा उनकी मां के सुपुर्द कर दिया और उसके कुछ महीनों के बाद वह सचमुच ही चल बसे। जैनेन्द्र कुमार इस तरह बाप के गुण ही विरासत में पा सके, और कुछ तो क्या, उनका प्यार भी उन्हें न मिला । पर जिसके भाग्य में प्यार बदा है, वह उसको क्यों न पाये ? बाप का प्यार न मिला तो मामा के इतने प्यारे बन गये कि १५ वर्ष की उम्र तक वह यह नहीं समझ पाये कि मामा उनके मामा हैं या उनके बाप। सन् १६०५ में ही जैनेन्द्रकुमार अपनी माँ समेत अपने मामा के घर पहुँच गये और वहाँ इतने एकमेक हो गये कि रिश्तेदारों को छोड़कर कोई कभी यह जान ही न पाया कि उनके बाप जीवित नहीं हैं। जैनेन्द्रकुमार की दो बहनें हैं, दोनों ही बड़ी हैं। उनमें से एक तो इतनी बड़ी है कि वह जैनेन्द्रकुमार को इतना प्यार करती है जितना प्यार शायद उनको
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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