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________________ २३० जनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व की आदि गरिमा में प्रज्वलित है। प्रमोदवादी मृणाल-पाकर्षण की बहुविज्ञापित पारिवारिकता में सामाजिक श्लीलता का आवरण है, केवल शुद्ध पारिवारिकता नहीं। उसमें प्रच्छन्न वासना का इन्द्र-धनुष है । प्रमोद का मृणाल-पाकर्षण वस्तुतः व्यक्ति सत्य का प्रकाशस्तम्भ है, व्यक्ति की मूलप्रवृत्तियों में ही शामिल है। प्रत्येक व्यक्ति प्रमोद की ही तरह किसी मृणाल के प्रति प्रच्छन्न वासना की पंखड़ियां लेकर प्राकर्षित होता है, मूल प्रवृत्ति की गरिमा व्यक्ति को मूल रूप से हस्तगत करती है। वह समाज के बाह्य आवरण को विशेष महत्ता नहीं प्रदान करती। मृणाल प्रमोद की बुना है, पर प्रमोद की हम-उम्र भी है; प्रमोद उसके रूप की ज्वाला के दाह को मूल भूत अनुभूति की मार्मिक गम्भीरता में अनुभूत करता है "बुमा का तब का रूप सोचता हूँ तो दंग रह जाता है। ऐसा रूप कब किसको विधाता देता है । जब देता है, तब कदाचित उसकी कीमत भी वसूल कर लेने की मन-ही-मन नीयत उसकी रहती है।" रूप को जैनेन्द्र ने, प्रमोद-अभिव्यक्ति के शब्दों में, विधाता का वरदान माना है । रूप पर विधातावाद का आरोप जैनेन्द्र की प्रास्तिकता का परिचायक है। रूप की "कीमत वसूल कर लेने की-मन-ही मन नीयत" विधाता की रहती है। इस पंक्ति में जैनेन्द्र के रूप-दर्शन का रहस्य है। प्रमोद की मृणाल प्रवणता को प्रचलित अर्थों में पाप की संज्ञा दे देना शायद उचित नहीं होगा। 'त्यागपत्र' की प्रथम पंक्ति यह है । "नहीं भाई, पाप-पुण्य की समीक्षा मुझसे न होगी ....." प्रमोदपरक मृणालप्रवणता में पाप-पुण्य का समीक्षात्मक दृष्टिकोण नहीं है । पाप-पुण्य को समीक्षात्मक दृष्टिकोण से प्रमोद ग्रहण नहीं करता। भगवतीचरण वर्मा के 'चित्रलेखा' उपन्यास का पाप-पुण्य विवेचन 'त्यागपत्र' में नहीं है, क्योकि व्यक्ति को जनेन्द्र ने आधारभूत सत्यों में रखकर देखने का प्रयत्न किया है । प्रमोदपरक मृणाल प्रवणता, मृणाल-प्रवृत्ति अर्थात् व्यक्ति के त्यागपत्र-पुरुष का मृणाल-वतवाद व्यक्ति का व्यक्ति सत्य है। यह व्यक्ति-सत्य मृणालवाद-अभिव्यक्त व्यक्ति सत्य है । व्यक्ति प्रमोद का आधारभूत मृणालवाद है। प्रमोद का त्यागपत्र यद्यपि भावुकता से दूर नहीं है, किन्तु वह व्यक्ति और प्रमोद के व्यक्ति-सत्य के मृणालवाद की मौन प्रतिक्रिया भी है। 'स्यागपत्र' पढ़कर अज्ञेय का उपन्यास 'शेखर : एक जीवनी' की याद करने को जी चाहता है। 'त्यागपत्र' के प्रारम्भ में मास्टर जी का प्रसंग अंग्रेजी उपन्यासकार-चार्ल्स डिकेन्स (Charles Dickens) का उपन्यास 'हार्ड टाइम्स' (Hard Times) की याद ताजा करता है । पर, 'हार्ड टाइम्स' के प्रारम्भ में दर्शित पंडग्रिंड-शिक्षण और त्याग
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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